जीवन Poetry (page 47)

ख़फ़ा है गर ये ख़ुदाई तो फ़िक्र ही क्या है

हफ़ीज़ बनारसी

जो नज़र से बयान होती है

हफ़ीज़ बनारसी

हमारे अहद का मंज़र अजीब मंज़र है

हफ़ीज़ बनारसी

गुमराह कह के पहले जो मुझ से ख़फ़ा हुए

हफ़ीज़ बनारसी

इक शगुफ़्ता गुलाब जैसा था

हफ़ीज़ बनारसी

बेदर्द मुझ से शरह-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी न पूछ

हादी मछलीशहरी

उस बेवफ़ा की बज़्म से चश्म-ए-ख़याल में

हादी मछलीशहरी

तू न हो हम-नफ़स अगर जीने का लुत्फ़ ही नहीं

हादी मछलीशहरी

निज़ाम-ए-तबीअत से घबरा गया दिल

हादी मछलीशहरी

नीला आसमान

हबीब तनवीर

यौम-ए-मई

हबीब जालिब

तेरे होने से

हबीब जालिब

'नूर-जहाँ'

हबीब जालिब

मीरा-जी

हबीब जालिब

कहीं आह बन के लब पर तिरा नाम आ न जाए

हबीब जालिब

'ग़ालिब'-ओ-'यगाना' से लोग भी थे जब तन्हा

हबीब जालिब

जबीन पर क्यूँ शिकन है ऐ जान मुँह है ग़ुस्से से लाल कैसा

हबीब मूसवी

भला हो जिस काम में किसी का तो उस में वक़्फ़ा न कीजिएगा

हबीब मूसवी

'हबीब' इस ज़िंदगी के पेच-ओ-ख़म से हम भी नालाँ हैं

हबीब हैदराबादी

दिल-ए-तन्हा में अब एहसास-ए-महरूमी नहीं शायद

हबीब हैदराबादी

कभी बे-कली कभी बे-दिली है अजीब इश्क़ की ज़िंदगी

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

ये ग़म नहीं है कि अब आह-ए-ना-रसा भी नहीं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

वो दर्द-ए-इश्क़ जिस को हासिल-ए-ईमाँ भी कहते हैं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

न बेताबी न आशुफ़्ता-सरी है

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

जबीं-ए-नवाज़ किसी की फ़ुसूँ-गरी क्यूँ है

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

हाए क्या दौर-ए-ज़िंदगी गुज़रा

गुलज़ार देहलवी

उस सितमगर की मेहरबानी से

गुलज़ार देहलवी

ये शुक्र है कि मिरे पास तेरा ग़म तो रहा

गुलज़ार

समय

गुलज़ार

खंडर

गुलज़ार

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