जीवन Poetry (page 46)

सब्ज़ा बाला-ए-ज़क़न दुश्मन है ख़ल्क़ुल्लाह का

हैदर अली आतिश

यारा-ए-गुफ़्तुगू नहीं आँखों में दम नहीं

हाफ़िज़ लुधियानवी

बद-तर है मौत से भी ग़ुलामी की ज़िंदगी

हफ़ीज़ मेरठी

सितम की तेग़ ये कहती है सर न ऊँचा कर

हफ़ीज़ मेरठी

बज़्म-ए-तकल्लुफ़ात सजाने में रह गया

हफ़ीज़ मेरठी

शब-ए-विसाल लगाया जो उन को सीने से

हफ़ीज़ जौनपुरी

हसीनों से फ़क़त साहिब-सलामत दूर की अच्छी

हफ़ीज़ जौनपुरी

अब तो नहीं आसरा किसी का

हफ़ीज़ जौनपुरी

वो सरख़ुशी दे कि ज़िंदगी को शबाब से बहर-याब कर दे

हफ़ीज़ जालंधरी

मिरा तजरबा है कि इस ज़िंदगी में

हफ़ीज़ जालंधरी

बे-तअल्लुक़ ज़िंदगी अच्छी नहीं

हफ़ीज़ जालंधरी

शाएर

हफ़ीज़ जालंधरी

मेरी शाएरी

हफ़ीज़ जालंधरी

'इक़बाल' के मज़ार पर

हफ़ीज़ जालंधरी

आख़िरी रात

हफ़ीज़ जालंधरी

वो सरख़ुशी दे कि ज़िंदगी को शबाब से बहर-याब कर दे

हफ़ीज़ जालंधरी

वफ़ादारियाँ सख़्त नादानियाँ हैं

हफ़ीज़ जालंधरी

उस शोख़ ने निगाह न की हम भी चुप रहे

हफ़ीज़ जालंधरी

उन को जिगर की जुस्तुजू उन की नज़र को क्या करूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

मिल जाए मय तो सज्दा-ए-शुकराना चाहिए

हफ़ीज़ जालंधरी

जहाँ क़तरे को तरसाया गया हूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

है अज़ल की इस ग़लत बख़्शी पे हैरानी मुझे

हफ़ीज़ जालंधरी

दिल अभी तक जवान है प्यारे

हफ़ीज़ जालंधरी

बे-तअल्लुक़ ज़िंदगी अच्छी नहीं

हफ़ीज़ जालंधरी

ऐ दोस्त मिट गया हूँ फ़ना हो गया हूँ मैं

हफ़ीज़ जालंधरी

अब तो कुछ और भी अंधेरा है

हफ़ीज़ जालंधरी

अब कोई आरज़ू नहीं शौक़-ए-पयाम के सिवा

हफ़ीज़ होशियारपुरी

ये किस मक़ाम पे लाई है ज़िंदगी हम को

हफ़ीज़ बनारसी

कभी ख़िरद कभी दीवानगी ने लूट लिया

हफ़ीज़ बनारसी

लब-ए-फ़ुरात वही तिश्नगी का मंज़र है

हफ़ीज़ बनारसी

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