जीवन Poetry (page 48)

सब्र हर बार इख़्तियार किया

गुलज़ार

रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले

गुलज़ार

मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता

गुलज़ार

हर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए

गुलज़ार

शायद अभी कमी सी मसीहाइयों में है

गुलनार आफ़रीन

शजर-ए-उम्मीद भी जल गया वो वफ़ा की शाख़ भी जल गई

गुलनार आफ़रीन

शब-ए-हिज्र में एक दिन देखना

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जो यूँ आप बैरून-ए-दर जाएँगे

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जब से गया है वो मिरा ईमान-ए-ज़िंदगी

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

मिले भी दोस्त तो इस तर्ज़-ए-बे-दिली से मिले

गुलाम जीलानी असग़र

वरक़ वरक़ जो ज़माने के शाहकार में था

गुहर खैराबादी

तारीकियों में अपनी ज़िया छोड़ जाऊँगा

गुहर खैराबादी

चराग़ से कभी तारों से रौशनी माँगे

गुहर खैराबादी

शख़्सियत उस ने चमक-दार बना रक्खी है

गोविन्द गुलशन

तड़प तो आज भी कुछ कम नहीं है

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

गिला क्या करूँ ऐ फ़लक बता मिरे हक़ में जब ये जहाँ नहीं

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले

गोपाल मित्तल

नज़्म

गोपाल मित्तल

नज़्म

गोपाल मित्तल

शे'र कहने का मज़ा है अब तो

गोपाल मित्तल

फ़क़त इक शग़्ल बेकारी है अब बादा-कशी अपनी

गोपाल मित्तल

अगरचे बे-हिसी-ए-दिल मुझे गवारा नहीं

गोपाल मित्तल

यास की बदली यूँ दिल पर छा गई

गोपाल कृष्णा शफ़क़

रह गई लुट कर बहार-ए-ज़िंदगी

गोपाल कृष्णा शफ़क़

मिरे पर न बाँधो

ग़ज़ाला ख़ाकवानी

ज़िंदगी

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

समीता-पाटिल

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

एक ज़ाती नज़्म

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

दुआ और बद-दुआ के दरमियाँ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

सब रंग ना-तमाम हों हल्का लिबास हो

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

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