जीवन Poetry (page 50)

दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए

ग़ालिब

दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं

ग़ालिब

किराया-दार

गीताञ्जलि राय

रह-ए-इश्क़ में ग़म-ए-ज़िंदगी की भी ज़िंदगी सफ़री रही

गणेश बिहारी तर्ज़

जिस्म तो मिट्टी में मिलता है यहीं मरने के बाद

गणेश बिहारी तर्ज़

साहब दिलों से राह में आँखें मिला के देख

फ़ुज़ैल जाफ़री

नौमीद करे दिल को न मंज़िल का पता दे

फ़ुज़ैल जाफ़री

कैसा मकान साया-ए-दीवार भी नहीं

फ़ुज़ैल जाफ़री

कैसा मकान साया-ए-दीवार भी नहीं

फ़ुज़ैल जाफ़री

चेहरे मकान राह के पत्थर बदल गए

फ़ुज़ैल जाफ़री

ज़ौक़-ए-नज़र को जल्वा-ए-बेताब ले गया

फ़ितरत अंसारी

ये ज़िंदगी के कड़े कोस याद आते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये माना ज़िंदगी है चार दिन की

फ़िराक़ गोरखपुरी

शामें किसी को माँगती हैं आज भी 'फ़िराक़'

फ़िराक़ गोरखपुरी

रोने को तो ज़िंदगी पड़ी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

पाल ले इक रोग नादाँ ज़िंदगी के वास्ते

फ़िराक़ गोरखपुरी

इस दौर में ज़िंदगी बशर की

फ़िराक़ गोरखपुरी

ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त

फ़िराक़ गोरखपुरी

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

शाम-ए-अयादत

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुगनू

फ़िराक़ गोरखपुरी

हिण्डोला

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़

फ़िराक़ गोरखपुरी

तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

तेज़ एहसास-ए-ख़ुदी दरकार है

फ़िराक़ गोरखपुरी

सुना तो है कि कभी बे-नियाज़-ए-ग़म थी हयात

फ़िराक़ गोरखपुरी

सितारों से उलझता जा रहा हूँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो

फ़िराक़ गोरखपुरी

समझता हूँ कि तू मुझ से जुदा है

फ़िराक़ गोरखपुरी

नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं

फ़िराक़ गोरखपुरी

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