जीवन Poetry (page 84)

उस पेड़ को छुआ तो समर-दार हो गया

अफ़ज़ल मिनहास

मैं फ़क़त इस जुर्म में दुनिया में रुस्वा हो गया

अफ़ज़ल मिनहास

मैं अपने दिल में नई ख़्वाहिशें सजाए हुए

अफ़ज़ल मिनहास

जो शख़्स भी मिला है वो इक ज़िंदा लाश है

अफ़ज़ल मिनहास

हर चंद ज़िंदगी का सफ़र मुश्किलों में है

अफ़ज़ल मिनहास

शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना

अफ़ज़ल ख़ान

शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना

अफ़ज़ल ख़ान

जब इक सराब में प्यासों को प्यास उतारती है

अफ़ज़ल ख़ान

तुम हमारे हो हम तुम्हारे हैं

अफ़ज़ल इलाहाबादी

कौन शाएर रह सकता है

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

जंगल के पास एक औरत

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

अगर उन्हें मालूम हो जाए

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

अगर हम गीत न गाते

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

किसी ने मुझ से कह दिया था ज़िंदगी पे ग़ौर कर

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

मैं ख़ाक में मिले हुए गुलाब देखता रहा

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

सभी हैं अपने मगर अजनबी से लगते हैं

आफ़ताब शम्सी

वापसी

आफ़ताब शम्सी

तलाश-ए-क़ाफ़िया में उम्र सब गुज़ारी है

आफ़ताब शम्सी

कुछ और तरह की मुश्किल में डालने के लिए

आफ़ताब हुसैन

ज़रा सी देर को चमका था वो सितारा कहीं

आफ़ताब हुसैन

निगाह के लिए इक ख़्वाब भी ग़नीमत है

आफ़ताब हुसैन

मुनाफ़िक़त का निसाब पढ़ कर मोहब्बतों की किताब लिखना

आफ़ताब हुसैन

करता कुछ और है वो दिखाता कुछ और है

आफ़ताब हुसैन

कहाँ किसी पे ये एहसान करने वाला हूँ

आफ़ताब हुसैन

जब सफ़र से लौट कर आने की तय्यारी हुई

आफ़ताब हुसैन

वो हमारी सम्त अपना रुख़ बदलता क्यूँ नहीं

अफ़सर माहपुरी

बहार आएगी गुलशन में तो दार-ओ-गीर भी होगी

अफ़सर माहपुरी

तुम्हारे हिज्र में क्यूँ ज़िंदगी न मुश्किल हो

अफ़सर इलाहाबादी

तुम्हारे हिज्र में क्यूँ ज़िंदगी न मुश्किल हो

अफ़सर इलाहाबादी

तिश्नगी बाक़ी रहे दीवानगी बाक़ी रहे

अफ़रोज़ तालिब

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