ज़याँ Poetry (page 2)

न नींद और न ख़्वाबों से आँख भरनी है

तहज़ीब हाफ़ी

सवाद-ए-ग़म में कहीं गोशा-ए-अमाँ न मिला

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

लुत्फ़ ये है जिसे आशोब-ए-जहाँ कहता हूँ

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

साहब की बिपता

सय्यद ज़मीर जाफ़री

ज़्याबतीस के मरीज़

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

इम्तिहान

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

सोज़-ए-ग़म भी नहीं फ़ुग़ाँ भी नहीं

सुरूर बाराबंकवी

वही बे-सबब से निशाँ हर तरफ़

सुल्तान अख़्तर

ख़ाक उड़ती है ख़रीदार कहाँ खो गए हैं

सुल्तान अख़्तर

काम आती नहीं अब कोई तदबीर हमारी

सुल्तान अख़्तर

जब कोई आलम-ए-शुहूद न था

सुहैल अख़्तर

इस ज़मीन ओ आसमाँ पर ख़ाक डाल

सुहैल अख़्तर

ख़ैर उस से न सही ख़ुद से वफ़ा कर डालो

सुहैल अहमद ज़ैदी

काविश-ए-बेश-ओ-कम की बात न कर

सूफ़ी तबस्सुम

शौक़ रातों को है दरपय कि तपाँ हो जाऊँ

सिराजुद्दीन ज़फ़र

शौक़ रातों को है दर पे कि तपाँ हो जाऊँ

सिराजुद्दीन ज़फ़र

ये इंक़लाब भी ऐ दौर-ए-आसमाँ हो जाए

सिराज लखनवी

आई है तिरे इश्क़ की बाज़ी दिल-ओ-जाँ पर

सिराज औरंगाबादी

क्या दास्ताँ थी पहले बयाँ ही नहीं हुई

सिराज अजमली

ये रोज़ ओ शब का तसलसुल रवाँ-दवाँ ही रहा

सिद्दीक़ शाहिद

नावक-ज़नी निगाह की ऐ जान-ए-जाँ है हेच

श्याम सुंदर लाल बर्क़

हम सूफ़ियों का दोनों तरफ़ से ज़ियाँ हुआ

शुजा ख़ावर

सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई

शुजा ख़ावर

इस कशाकश में यहाँ उम्र-ए-रवाँ गुज़रे है

शोरिश काश्मीरी

राज़-ए-फ़ितरत निहाँ था निहाँ है अभी

शोला हस्पानवी

तेरा चेहरा देख के हर शब सुब्ह दोबारा लिखती है

शोएब निज़ाम

देखो फ़िराक़-ए-यार में जाँ खो रहा है वो

शहज़ाद रज़ा लम्स

है बद बला किसी को ग़म-ए-जावेदाँ न हो

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

हसरत-ए-ज़ोहरा-वशाँ सर्व-क़दाँ है कि जो थी

शौक़ माहरी

तिश्ना-लब कोई जो सर-गश्ता सराबों में रहा

शरर फ़तेह पुरी

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