आइना Poetry (page 13)
कभी नाकामियों का अपनी हम मातम नहीं करते
आज़ाद गुरदासपुरी
ख़ुश बहुत आते हैं मुझ को रास्ते दुश्वार से
औरंगज़ेब
अश्क को दरिया बनाया आँख को साहिल किया
औरंगज़ेब
चराग़ हाथों के बुझ रहे हैं सितारा हर रह-गुज़र में रख दे
अतीक़ुल्लाह
हर्फ़ लर्ज़ां हैं कि होंटों पे वो आएँ कैसे?
अतीक़ असर
मैं अपनी ख़ाक को जब आइना बनाता हूँ
अतीक़ अहमद
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म रहूँ रूह के ख़राबों से
अता शाद
अदावतों का ये उस को सिला दिया हम ने
असरा रिज़वी
तू अपने शहर-ए-तरब से न पूछ हाल मिरा
असलम महमूद
देख के अर्ज़ां लहू सुर्ख़ी-ए-मंज़र ख़मोश
असलम महमूद
बुझ गए मंज़र उफ़ुक़ पर हर निशाँ मद्धम हुआ
असलम महमूद
हर-चंद बे-नवा है कोरे घड़े का पानी
असलम कोलसरी
कोई इशारा कोई इस्तिआ'रा क्यूँकर हो
असलम इमादी
अपनी सदा की गूँज ही तुझ को डरा न दे
असलम अंसारी
सामने रह कर न होना मसअला मेरा भी है
आसिम वास्ती
मिरी नज़र मिरा अपना मुशाहिदा है कहाँ
आसिम वास्ती
पर्दे मिरी निगाह के भी दरमियाँ न थे
अशरफ़ रफ़ी
बसीत-ए-दश्त की हुर्मत को बाम-ओ-दर दे दे
अशरफ़ जावेद
मंज़िल-ए-सिदक़-ओ-सफ़ा का रास्ता अपनाइए
अशोक साहनी
मैं सोचता तो हूँ लेकिन ये बात किस से कहूँ
अशफ़ाक़ अंजुम
अक्स को फूल बनाने में गुज़र जाती है
अशफ़ाक़ नासिर
किस तरह आए तिरी बज़्म-ए-तरब में आइना
असीर लखनवी
निगह-ए-शौक़ को यूँ आइना-सामानी दे
असर लखनवी
मिरे बदन पे ज़मानों की ज़ंग है लेकिन
असअ'द बदायुनी
हरीफ़ कोई नहीं दूसरा बड़ा मेरा
असअ'द बदायुनी
गँवा के दिल सा गुहर दर्द-ए-सर ख़रीद लिया
आरज़ू लखनवी
मिसाल-ए-आइना हम जब से हैरती हैं तिरे
अरशद अली ख़ान क़लक़
हैं तेग़-ए-नाज़-ए-यार के बिस्मिल अलग अलग
अरशद अली ख़ान क़लक़
आरिज़ में तुम्हारे क्या सफ़ा है
अरशद अली ख़ान क़लक़
ये आइना था मगर ग़म की रहगुज़ार में था
अर्श सहबाई
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