मित्रों Poetry (page 6)

'ग़ालिब' को बुरा क्यूँ कहो

दिलावर फ़िगार

गुलशन-ए-जग में ज़रा रंग-ए-मोहब्बत नीं है

दाऊद औरंगाबादी

हुस्न-ए-अज़ल का जल्वा हमारी नज़र में है

दत्तात्रिया कैफ़ी

ख़ुदा ने इल्म बख़्शा है अदब अहबाब करते हैं

चकबस्त ब्रिज नारायण

नए झगड़े निराली काविशें ईजाद करते हैं

चकबस्त ब्रिज नारायण

न कोई दोस्त दुश्मन हो शरीक-ए-दर्द-ओ-ग़म मेरा

चकबस्त ब्रिज नारायण

क़ाबिल-ए-शरह मिरा हाल-ए-दिल-ए-ज़ार न था

बिस्मिल इलाहाबादी

जिस की हर बात में क़हक़हा जज़्ब था मैं न था दोस्तो

बिमल कृष्ण अश्क

ज़ौक़-ए-उल्फ़त अब भी है राहत का अरमाँ अब भी है

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

शब की आग़ोश में महताब उतारा उस ने

अज़्म शाकरी

मुझ से ये पूछ रहे हैं मिरे अहबाब 'अज़ीज़'

अज़ीज़ वारसी

सोज़िश-ए-ग़म के सिवा काहिश-ए-फ़ुर्क़त के सिवा

अज़ीज़ वारसी

कभी मधुर कभी मीठी ज़बाँ का शाइ'र हूँ

अज़हर हाश्मी

रस्म-ए-अंदेशा से फ़ारिग़ हुए हम

आज़र तमन्ना

यही बहुत है कि अहबाब पूछ लेते हैं

अतहर नासिक

मैं तुझे भूलना चाहूँ भी तो ना-मुम्किन है

अतहर नासिक

तुझ को ख़िफ़्फ़त से बचा लूँ पानी

अता आबिदी

गुबार-ए-एहसास-ए-पेश-ओ-पस की अगर ये बारीक तह हटाएँ

असलम अंसारी

सर्द-मेहरी से तिरी दिल जो तपाँ रखते हैं

अश्क रामपुरी

अजनबियत थी मगर ख़ामोश इस्तिफ़्सार पर

अशहर हाशमी

सुनो कुछ दीदा-ए-नम बोलते हैं

असग़र वेलोरी

इतना एहसास तो दे पालने वाले मुझ को

असग़र मेहदी होश

वो सारी बातें मैं अहबाब ही से कहता हूँ

असअ'द बदायुनी

हवा के पास बस इक ताज़ियाना होता है

असअ'द बदायुनी

मुझ को दिल क़िस्मत ने उस को हुस्न-ए-ग़ारत-गर दिया

आरज़ू लखनवी

दफ़्तर जो गुलों के वो सनम खोल रहा है

अरशद अली ख़ान क़लक़

ग़म की गर्मी से दिल पिघलते रहे

अर्श सिद्दीक़ी

जब सितारों की रिदा काँधे से सरकाती है रात

अर्जुमंद बानो अफ़्शाँ

अपने अहबाब को अशआ'र सुनाने निकला

आरिफ़ अंसारी

कड़ा है दिन बड़ी है रात जब से तुम नहीं आए

अनवर शऊर

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