जिस की हर बात में क़हक़हा जज़्ब था मैं न था दोस्तो

जिस की हर बात में क़हक़हा जज़्ब था मैं न था दोस्तो

वो जो हँसता हँसाता था इस शहर में हो लिया दोस्तो

एक एक कर के अहल-ए-इल्म चल दिए शहर वीरान है

एक ले-दे के मैं बच रहा हूँ सो मुझ में है क्या दोस्तो

एक दो फूल थे सुख के टहनी पे सो वो भी मुरझा गए

वर्ना इस पेड़ पे हर समय हर तरफ़ रंग था दोस्तो

बा-वफ़ा मेहरबाँ सब के सब शहर से हो चुके थे बिदा

जब यहाँ आए थे हम वफ़ा मेहर का काल था दोस्तो

एक लम्हे वो मुझ पास चुप-चाप सा बैठ कर उठ गया

दिल से उठता रहा मुद्दतों मुद्दतों शोर सा दोस्तो

हम हवस की तरह इश्क़ करते रहे रूह भी जिस्म भी

अपनी बेदारियों का सिला ख़्वाब ही ख़्वाब था दोस्तो

ये न मिलना भी इक और एहसान है बेवफ़ाई नहीं

हाल देखा न जाता था अहबाब से 'अश्क' का दोस्तो

(1063) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Jis Ki Har Baat Mein Qahqaha Jazb Tha Main Na Tha Dosto In Hindi By Famous Poet Bimal Krishn Ashk. Jis Ki Har Baat Mein Qahqaha Jazb Tha Main Na Tha Dosto is written by Bimal Krishn Ashk. Complete Poem Jis Ki Har Baat Mein Qahqaha Jazb Tha Main Na Tha Dosto in Hindi by Bimal Krishn Ashk. Download free Jis Ki Har Baat Mein Qahqaha Jazb Tha Main Na Tha Dosto Poem for Youth in PDF. Jis Ki Har Baat Mein Qahqaha Jazb Tha Main Na Tha Dosto is a Poem on Inspiration for young students. Share Jis Ki Har Baat Mein Qahqaha Jazb Tha Main Na Tha Dosto with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.