मित्रों Poetry (page 2)

हर इक महफ़िल में ये ही सोचता हूँ

सुनील कुमार जश्न

ज़िंदगी क्या है इक सफ़र के सिवा

सूफ़ी तबस्सुम

समुंदरों में सराब और ख़ुश्कियों में गिर्दाब देखता है

सिराज अजमली

अब यही बेहतर है नक़्श-ए-आब होने दे मुझे

सिद्दीक़ मुजीबी

मुँह से जो मिलाइए किसी को

शऊर बलगिरामी

हम शहर में इक शम्अ की ख़ातिर हुए बर्बाद

शोहरत बुख़ारी

मुस्लिम-लीग

शिबली नोमानी

हिजाब-ए-राज़ फ़ैज़-ए-मुर्शिद-ए-कामिल से उठता है

शेर सिंह नाज़ देहलवी

कल जहाँ से कि उठा लाए थे अहबाब मुझे

ज़ौक़

ग़म की अँधेरी राहों में तो तुम भी नहीं काम आओ हो

शौकत परदेसी

ग़ज़ल वही है जो हो शाख़-ए-गुल-निशाँ की तरह

शारिक़ ईरायानी

अपना घर भी कोई आसेब का घर लगता है

शम्स तबरेज़ी

कोई भी दार से ज़िंदा नहीं उतरता है

शकील जमाली

हम कब उस राह से गुज़रते हैं

शकील ग्वालिआरी

आज उस बज़्म में यूँ दाद-ए-वफ़ा दी जाए

शकील ग्वालिआरी

मौसम-ए-गुल साथ ले कर बर्क़ ओ दाम आ ही गया

शकील बदायुनी

लम्हा लम्हा बार है तेरे बग़ैर

शकील बदायुनी

जाम गर्दिश में है दर-बंद हैं मय-ख़ानों के

शकील बदायुनी

इश्क़ की चिंगारियों को फिर हवा देने लगे

शकील बदायुनी

गूँजता है नाला-ए-महताब आधी रात को

शकेब जलाली

न दिन पहाड़ लगे अब न रात भारी लगे

शकेब बनारसी

शब-ए-तन्हाई

शाइस्ता मुफ़्ती

बताऊँ किस तरह अहबाब को आँखें जो ऐसी हैं

शहरयार

किसी बंजर तख़य्युल पर किसी बे-आब रिश्ते में

शहनवाज़ ज़ैदी

नन्हा सा दिया है कि तह-ए-आब है रौशन

शाहिद कमाल

ऐन मुमकिन है किसी रोज़ क़यामत कर दें

शगुफ़्ता अल्ताफ़

हम ख़राबे में बसर कर गए ख़ामोशी से

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

मोहब्बत की करिश्मा-साज़ियाँ आवाज़ देती हैं

शफ़ीक़ आसिफ़

ना-फ़हम कहूँ मैं उसे ऐसा भी नहीं है

शायर फतहपुरी

तेरी ज़ुल्फ़ें ग़ैर अगर सुलझाएगा

शाद अज़ीमाबादी

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