अन्ना Poetry (page 8)

तुम्हें भी चाहा, ज़माने से भी वफ़ा की थी

इफ़्तिख़ार मुग़ल

इक ख़ला, एक ला-इंतिहा और मैं

इफ़्तिख़ार मुग़ल

ख़ाक में दौलत-ए-पिंदार-ओ-अना मिलती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कोई मुज़्दा न बशारत न दुआ चाहती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बे-सम्त रास्तों पे सदा ले गई मुझे

इफ़्फ़त ज़र्रीं

शब-ए-फ़ुर्क़त की तन्हाई का लम्हा

इफ़्फ़त अब्बास

इन लफ़्ज़ों में ख़ुद को ढूँडूँगी मैं भी

हुमैरा रहमान

दस्तक हवा ने दी है ज़रा ग़ौर से सुनो

हिमायत अली शाएर

वही हुआ कि ख़ुद भी जिस का ख़ौफ़ था मुझे

हिलाल फ़रीद

थी अजब ही दास्ताँ जब तमाम हो गई

हिलाल फ़रीद

कभी तो सेहन-ए-अना से निकले कहीं पे दश्त-ए-मलाल आया

हिलाल फ़रीद

हम ख़ुद भी हुए नादिम जब हर्फ़-ए-दुआ निकला

हिलाल फ़रीद

मैं अक्सर सोचती हूँ ज़िंदगी को कौन लिक्खेगा

हिजाब अब्बासी

मौजा-ए-अश्क से भीगी न कभी नोक-ए-क़लम

हसन नईम

पैकर-ए-नाज़ पे जब मौज-ए-हया चलती थी

हसन नईम

एक भी हर्फ़ न था ख़ुश-ख़बरी का लिक्खा

हसन नईम

अना अना के मुक़ाबिल है राह कैसे खुले

हनीफ़ कैफ़ी

हर इक कमाल को देखा जो हम ने रू ब-ज़वाल

हनीफ़ कैफ़ी

है राह-रौ के हुए हादसात की दीवार

हनीफ़ कैफ़ी

आरज़ूएँ कमाल-आमादा

हनीफ़ कैफ़ी

नफ़स नफ़स ने उड़ाईं हवाइयाँ क्या क्या

हनीफ़ अख़गर

एक क़तरा न कहीं ख़ूँ का बहा मेरे बअ'द

हमदम कशमीरी

टूट कर बिखरे न सूरज भी है मुझ को डर बहुत

हकीम मंज़ूर

उस दरबार में लाज़िम था अपने सर को ख़म करते

हैदर क़ुरैशी

मुंतज़िर था वो तो जुस्त-ओ-जू में ये आवारा था

हैदर अली आतिश

तमाम रात आँसुओं से ग़म उजालता रहा

हफ़ीज़ मेरठी

हमारे अहद का मंज़र अजीब मंज़र है

हफ़ीज़ बनारसी

यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता

गुलज़ार

ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता

गुलज़ार

मसरफ़ के बग़ैर जल रहा हूँ

गोपाल मित्तल

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