अन्ना Poetry (page 7)

न जाने कौन सा मंज़र नज़र से गुज़रा था

रौनक़ रज़ा

कुछ अजब सा हूँ सितमगर मैं भी

रउफ़ रज़ा

पत्ते तमाम हल्क़ा-ए-सरसर में रह गए

रऊफ़ ख़ैर

ना-ख़ुश गदाई से न वो शाही से ख़ुश हुए

रऊफ़ ख़ैर

मैं जंग जीत के जब्र-ओ-अना की हार गया

रासिख़ इरफ़ानी

खंडर में दफ़्न हुई हैं इमारतें क्या क्या

रासिख़ इरफ़ानी

गर्म हर लम्हा लहू जिस्म के अंदर रखना

रासिख़ इरफ़ानी

अँधेरों में उजाले खो रहे हैं

रासिख़ इरफ़ानी

आस हुस्न-ए-गुमान से टूटी

रासिख़ इरफ़ानी

अपने होने का कोई साज़ नहीं देती है

राशिद तराज़

जो क़र्ज़ मुझ पे है वो बोझ उतारता जाऊँ

राशिद मुफ़्ती

अजब मअरका

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

ख़याल की तरह चुप हो सदा हुए होते

राशिद आज़र

ये ज़िंदगी सज़ा के सिवा और कुछ नहीं

रम्ज़ अज़ीमाबादी

शौक़ की हद को अभी पार किया जाना है

राजेश रेड्डी

न जिस्म साथ हमारे न जाँ हमारी तरफ़

राजेश रेड्डी

हाथ हमारे सब से ऊँचे हाथों ही से गिला भी है

रईस फ़रोग़

निकलो हिसार-ए-ज़ात से तो कुछ सुझाई दे

रहमत क़रनी

ख़ुद को मुम्ताज़ बनाने की दिली-ख़्वाहिश में

राही फ़िदाई

अपनी ख़बर, न उस का पता है, ये इश्क़ है

इरफ़ान सत्तार

अपनी अना की आज भी तस्कीन हम ने की

इक़बाल साजिद

दुनिया ने ज़र के वास्ते क्या कुछ नहीं किया

इक़बाल साजिद

अपनी अना की आज भी तस्कीन हम ने की

इक़बाल साजिद

बगूलों की सफ़ें किरनों के लश्कर सामने आए

इक़बाल माहिर

'इक़बाल' यूँही कब तक हम क़ैद-ए-अना काटें

इक़बाल कौसर

तोडूँगा ख़ुम-ए-बादा-ए-अंगूर की गर्दन

इंशा अल्लाह ख़ान

टूटा फूटा सही एहसास-ए-अना है मुझ में

इंद्र सरूप श्रीवास्तवा

कभी मुड़ के फिर इसी राह पर न तो आए तुम न तो आए हम

इन्दिरा वर्मा

मौत सी ख़मोशी जब उन लबों पे तारी की

इकराम मुजीब

पहनाई

इज्तिबा रिज़वी

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