अंदर Poetry (page 24)

निशान-ए-ज़िंदगी

एजाज़ गुल

ज़रा बतला ज़माँ क्या है मकाँ के उस तरफ़ क्या है

एजाज़ गुल

मंज़र-ए-वक़्त की यकसानी में बैठा हुआ हूँ

एजाज़ गुल

महमिल है मतलूब न लैला माँगता है

एजाज़ गुल

ढूँढता हूँ रोज़-ओ-शब कौन से जहाँ में है

एजाज़ गुल

ढूँढता हूँ रोज़-ओ-शब कौन से जहाँ में है

एजाज़ गुल

चल रहा हूँ पेश-ओ-पस-मंज़र से उकताया हुआ

एजाज़ गुल

मैं

एजाज़ फ़ारूक़ी

अपना अपना रंग

एजाज़ फ़ारूक़ी

वो शख़्स कभी जिस ने मिरा घर नहीं देखा

दिलावर फ़िगार

शोर से बच्चों के घबराते हैं घर पर और हम

दिलावर फ़िगार

यूँ दीदा-ए-ख़ूँ-बार के मंज़र से उठा मैं

दिलावर अली आज़र

ख़ुद में खिलते हुए मंज़र से नुमूदार हुआ

दिलावर अली आज़र

वक़्त की सदियाँ

दाऊद ग़ाज़ी

अश्क मेरे अपने

दर्शिका वसानी

भला ये कौन है मेरे ही अंदर मुझ से रंजिश में

दर्शिका वसानी

एक सब आग एक सब पानी

दानियाल तरीर

उजाला ही उजाला रौशनी ही रौशनी है

दानियाल तरीर

यूँ मेरे साथ दफ़्न दिल-ए-बे-क़रार हो

दाग़ देहलवी

क़रीने से अजब आरास्ता क़ातिल की महफ़िल है

दाग़ देहलवी

बी.टी-नामा

कर्नल मोहम्मद ख़ान

कभी हवा ने कभी उड़ते पत्थरों ने किया

चंद्र प्रकाश शाद

बदन को अपनी बिसात तक तो पसारना था

चंद्र प्रकाश शाद

शिकन-अंदर-शिकन याद आ गया है

बुशरा ज़ैदी

अपने सारे रास्ते अंदर की जानिब मोड़ कर

बुशरा एजाज़

मेरे ख़ामोश ख़ुदा

बुशरा एजाज़

मंज़रों के दरमियाँ मंज़र बनाना चाहिए

बुशरा एजाज़

सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते

बिस्मिल सईदी

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

बिस्मिल अज़ीमाबादी

इतना भी न साक़ी होश रहा पी कर ये हमें मय-ख़ाना था

बिस्मिल इलाहाबादी

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