अंदर Poetry (page 25)

नाम उस का

बिमल कृष्ण अश्क

कब एक रंग में दुनिया का हाल ठहरा है

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

दीवार-ए-काबा 19 नवम्बर 1989

बिलाल अहमद

बस ज़रा इक आइने के टूटने की देर थी

भारत भूषण पन्त

ख़्वाब जीने नहीं देंगे तुझे ख़्वाबों से निकल

भारत भूषण पन्त

फ़र्श ता अर्श कोई नाम-ओ-निशाँ मिल न सका

बेकल उत्साही

यूँ तो कहने को तिरी राह का पत्थर निकला

बेकल उत्साही

मेरे अंदर का पाँचवाँ मौसम

बेदिल हैदरी

अन-कही को कही बनाना है

बेदिल हैदरी

हब्स के दिनों में भी घर से कब निकलते हैं

बशीर सैफ़ी

किस मस्ती में अब रहता हूँ

बशीर महताब

फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे

बशीर बद्र

अक्स हर रोज़ किसी ग़म का पड़ा करता है

बशर नवाज़

हम कहाँ आइना ले कर आए

बाक़ी सिद्दीक़ी

ऐसा वार पड़ा सर का

बाक़ी सिद्दीक़ी

माँ

बक़ा बलूच

हादसा होता रहा है मुझ में

बलवान सिंह आज़र

दो क़दम साथ क्या चला रस्ता

बलवान सिंह आज़र

दीदा-ए-बे-रंग में ख़ूँ-रंग मंज़र रख दिए

बख़्श लाइलपूरी

कहीं सुब्ह-ओ-शाम के दरमियाँ कहीं माह-ओ-साल के दरमियाँ

बद्र-ए-आलम ख़लिश

आसमाँ पर काले बादल छा गए

बद्र-ए-आलम ख़लिश

मुझ को नहीं मालूम कि वो कौन है क्या है

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

गिरे क़तरों में पत्थर पर सदा ऐसा भी होता है

अज़रा वहीद

कैसे कैसे स्वाँग रचाए हम ने दुनिया-दारी में

अज़रा नक़वी

मुझे तक़्सीम कर दो

अज़रा अब्बास

अजीब हालत है जिस्म-ओ-जाँ की हज़ार पहलू बदल रहा हूँ

अज़्म शाकरी

शब की आग़ोश में महताब उतारा उस ने

अज़्म शाकरी

चाँद सा चेहरा कुछ इतना बेबाक हुआ

अज़्म शाकरी

अजीब हालत है जिस्म-ओ-जाँ की हज़ार पहलू बदल रहा हूँ

अज़्म शाकरी

मैं ने कल ख़्वाब में आइंदा को चलते देखा

अज़्म बहज़ाद

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