अंधेरे Poetry (page 1)

मुँह अंधेरे जगा के छोड़ गई

अहमद मुश्ताक़

मुद्दतों बा'द वो गलियाँ वो झरोके देखे

महमूद शाम

दुश्मन की तरफ़ दोस्ती का हाथ

मुनीर नियाज़ी

नूर अँधेरे की फ़सीलों पे सजा देता हूँ

ख़ून के दरिया बह जाते हैं ख़ैर और ख़ैर के बीच

ज़िया जालंधरी

आँखों में निहाँ है जो मुनाजात वो तुम हो

ज़िया जालंधरी

एक लड़की

ज़ेहरा निगाह

ये हुक्म है कि अँधेरे को रौशनी समझो

ज़ेहरा निगाह

ख़ुद-कलामी ख़ातून-ए-ख़ाना की

ज़ेहरा अलवी

यादें

ज़ीशान साहिल

सफ़ेद ख़रगोश की गेंद

ज़ीशान साहिल

कश्ती

ज़ीशान साहिल

एक लड़की ने आईना देखा

ज़ीशान साहिल

दहशत-गर्द शायर

ज़ीशान साहिल

आधी ज़िंदगी

ज़ीशान साहिल

सियह बिस्तर पड़े हैं सुब्ह-ए-नज़्ज़ारा उतर आए

ज़काउद्दीन शायाँ

ना-तवानी में पलक को भी हिलाया न गया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

तुम जा चुकी हो

ज़ाहिद इमरोज़

हाँ वो मैं ही था कि जिस ने ख़्वाब ढोया सुब्ह तक

ज़हीर सिद्दीक़ी

हर्फ़-ए-तदबीर न था हर्फ़-ए-दिलासा रौशन

ज़फ़र मुरादाबादी

जिधर से खोल के बैठे थे दर अंधेरे का

ज़फ़र इक़बाल

यूँ तो है ज़ेर-ए-नज़र हर माजरा देखा हुआ

ज़फ़र इक़बाल

नहीं कि दिल में हमेशा ख़ुशी बहुत आई

ज़फ़र इक़बाल

कुछ दिनों से जो तबीअत मिरी यकसू कम है

ज़फ़र इक़बाल

देख लेते हैं अंधेरे में भी रस्ता अपना

ज़फर इमाम

धूप निकली कभी बादल से ढकी रहती है

ज़फर इमाम

सवाली

यूसुफ़ ज़फ़र

ख़ुद-शनासी

यूसुफ़ तक़ी

ज़ख़्मों की मुनाजात में पिन्हाँ वो असर था

युसूफ़ जमाल

उन्हें क़ैद करने की कोशिश है कैसी

युसूफ़ जमाल

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