अंधेरे Poetry (page 2)

ख़्वाब आईना कर रही है दिल में

यूसुफ़ हसन

जो सुख के उजाले में था परछाईं हमारी

यशपाल गुप्ता

यूँ बाग़ कोई हम ने उजड़ता नहीं देखा

यशपाल गुप्ता

मुसाफ़िरों के ये वहम-ओ-गुमाँ में था ही नहीं

याक़ूब तसव्वुर

टीन का डिब्बा

वज़ीर आग़ा

कोह-ए-निदा

वज़ीर आग़ा

धार सी ताज़ा लहू की शबनम-अफ़्शानी में है

वज़ीर आग़ा

खेल मौजों का ख़तरनाक सही क्या मैं इस खेल से डर जाऊँगा

वाक़िफ़ राय बरेलवी

तिरी नज़र में तिरे मा-सिवा नहीं होगा

वक़ार वासिक़ी

मन की मय हो तो पियाले नहीं देखे जाते

वक़ार ख़ान

आज तक जो भी हुआ उस को भुला देना है

वाली आसी

जो सुनना चाहो तो बोल उट्ठेंगे अँधेरे भी

वहीद अख़्तर

कतरा के गुल्सिताँ से जो सू-ए-क़फ़स चले

वहीद अख़्तर

इक दश्त-ए-बे-अमाँ का सफ़र है चले-चलो

वहीद अख़्तर

अँधेरा इतना नहीं है कि कुछ दिखाई न दे

वहीद अख़्तर

शाम के दिन रात

वहीद अहमद

चल कर कभी हमारे अंधेरे भी देखिए

तसनीम फ़ारूक़ी

चश्म-ए-बीना! तिरे बाज़ार का मेआर हैं हम

तारिक़ क़मर

इक न इक शम् अँधेरे में जलाए रखिए

तारिक़ बदायुनी

दश्त में जो भी है जैसा मिरा देखा हुआ है

तनवीर सामानी

सफ़र और क़ैद में अब की दफ़अ' क्या हुआ

तनवीर अंजुम

तुम्हारी याद बढ़ी और दिल हुआ रौशन

ताजदार आदिल

जो मिल गया है यहाँ जल्वा-ए-ख़याली है

ताजदार आदिल

शायरों का जब्र

ताबिश कमाल

क़िस्सा-ए-शब

ताबिश कमाल

अपने ज़र्फ़ अपनी तलब अपनी नज़र की बात है

सय्यद ज़मीर जाफ़री

रिवाज-ओ-रस्म का उस को हुनर भी आता है

सय्यद मुनीर

जश्न बरबाद ख़यालों का मना लूँ तो चलूँ

सय्यद मुबीन अल्वी ख़ैराबादी

था आईने के सामने चेहरा खुला हुआ

सय्यद अहमद शमीम

चाँद सितारों से क्या पूछूँ कब दिन मेरे फिरते हैं

सय्यद आबिद अली आबिद

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