अंधेरे Poetry (page 11)

मैं जिस चराग़ से बैठा था लौ लगाए हुए

अंजुम सलीमी

मैं अंधेरे में हूँ मगर मुझ में

अंजुम सलीमी

बस अंधेरे ने रंग बदला है

अंजुम सलीमी

रौशनी कम है

अमजद नजमी

कितनी सरकश भी हो सर-फिरी ये हवा रखना रौशन दिया

अमजद इस्लाम अमजद

ग़ुबार-ए-दश्त-ए-तलब में हैं रफ़्तगाँ क्या क्या

अमजद इस्लाम अमजद

माज़ी के जब ज़ख़्म उभरने लगते हैं

अमित शर्मा मीत

आईना देख कर न तो शीशे को देख कर

अम्बर वसीम इलाहाबादी

दिल की हर बात तिरी मुझ को बता देती है

अम्बर जोशी

चेहरों पे ज़र-पोश अंधेरे फैले हैं

अम्बर बहराईची

जगमगाती रौशनी के पार क्या था देखते

अम्बर बहराईची

हर तरफ़ उस के सुनहरे लफ़्ज़ हैं फैले हुए

अम्बर बहराईची

चेहरों पे ज़र-पोश अंधेरे फैले हैं

अम्बर बहराईची

मुनाजात-ए-बेवा

अल्ताफ़ हुसैन हाली

किस तरह जाऊँ कि ये आए हुए रात में हैं

अली ज़ुबैर

तख़्लीक़ का कर्ब

अली सरदार जाफ़री

नींद

अली सरदार जाफ़री

बम्बई

अली सरदार जाफ़री

अब आ गया है जहाँ में तो मुस्कुराता जा

अली सरदार जाफ़री

ख़्वाब इक परिंदा है

अली असग़र अब्बास

कश्फ़

अली अकबर अब्बास

हमारी आँख ने देखे हैं ऐसे मंज़र भी

अली अहमद जलीली

मौसम-ए-गुल पर ख़िज़ाँ का ज़ोर चल जाता है क्यूँ

अलीना इतरत

बा'द मुद्दत के खुला जौहर-ए-नायाब मिरा

अलीम सबा नवेदी

बहुत सुकून से रहते थे हम अँधेरे में

आलम ख़ुर्शीद

ज़रा सी धूप ज़रा सी नमी के आने से

आलम ख़ुर्शीद

शीशा का आदमी

अख़्तर-उल-ईमान

राह-ए-फ़रार

अख़्तर-उल-ईमान

एक लड़का

अख़्तर-उल-ईमान

एक कहानी

अख़्तर रज़ा सलीमी

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