अंधेरे Poetry (page 9)

भूक में दबे बचपन

दर्शिका वसानी

जज़्बा-ए-दिल को अमल में कभी लाओ तो सही

दर्शन सिंह

वो काश मान लेता कभी हम-सफ़र मुझे

चाँदनी पांडे

सुलगती रेत में इक चेहरा आब सा चमका

बृजेश अम्बर

रुख़ पे गेसू जो बिखर जाएँगे

बिस्मिल अज़ीमाबादी

हमारी जागती आँखों में ख़्वाब सा क्या था

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

दीवार-ए-काबा 19 नवम्बर 1989

बिलाल अहमद

इश्क़ का रोग तो विर्से में मिला था मुझ को

भारत भूषण पन्त

हम भटकते रहे अंधेरे में

बेकल उत्साही

हम चटानों की तरह साहिल पे ढाले जाएँगे

बेकल उत्साही

फ़स्ल-ए-गुल कब लुटी नहीं मालूम

बेकल उत्साही

वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है

बशीर बद्र

जब कोई टीस दिल दुखाती है

बलवान सिंह आज़र

चराग़ों में अँधेरा है अँधेरे में उजाले हैं

बद्र वास्ती

है बहुत मुश्किल निकलना शहर के बाज़ार में

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

जलती बुझती हुई आँखों में सितारे लिक्खे

अज़रा वहीद

हाथ खोल दिए जाएँ

अज़रा अब्बास

अँधेरा

अज़रा अब्बास

आख़िरी रूसूमात के दौरान

अज़रा अब्बास

अजीब हालत है जिस्म-ओ-जाँ की हज़ार पहलू बदल रहा हूँ

अज़्म शाकरी

मैं ने चुप के अंधेरे में ख़ुद को रखा इक फ़ज़ा के लिए

अज़्म बहज़ाद

सफ़र मुदाम सफ़र

अज़ीज़ तमन्नाई

आह-ए-बे-असर निकली नाला ना-रसा निकला

अज़ीज़ क़ैसी

निगाह-ए-नाज़ में हया भी है

अज़ीज़ हैदराबादी

हम उस को भूल बैठे हैं अँधेरे हम पे तारी हैं

अज़ीज़ अन्सारी

न जाने शाम ने क्या कह दिया सवेरे से

अज़हर नवाज़

हर एक राह में इम्कान-ए-हादिसा है अभी

अज़हर नैयर

शुरू-ए-इश्क़ में लोगों ने इतनी शिद्दत की

अज़हर इनायती

कभी नाकामियों का अपनी हम मातम नहीं करते

आज़ाद गुरदासपुरी

कर्ब हरे मौसम का तब तक सहना पड़ता है

आज़ाद गुलाटी

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