बहुत सुकून से रहते थे हम अँधेरे में
फ़साद पैदा हुआ रौशनी के आने से
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तह-ब-तह है राज़ कोई आब की तहवील में
जल बुझा हूँ मैं मगर सारा जहाँ ताक में है
मैं ने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोई
तमाम रंग अधूरे लगे तिरे आगे
कोई सूरत भी नहीं मिलती किसी सूरत में
तिरे ख़याल को ज़ंजीर करता रहता हूँ
पीछे छूटे साथी मुझ को याद आ जाते हैं
हर घर में कोई तह-ख़ाना होता है
आए हो नुमाइश में ज़रा ध्यान भी रखना
हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं
नए सिरे से कोई सफ़र आग़ाज़ नहीं करता
हम को लुत्फ़ आता है अब फ़रेब खाने में