अपनी कहानी दिल में छुपा कर रखते हैं
दुनिया वालों को हैरान नहीं करते
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हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं
कभी कभी कितना नुक़सान उठाना पड़ता है
तुम जिस को ढूँडते हो ये महफ़िल नहीं है वो
अहल-ए-हुनर की आँखों में क्यूँ चुभता रहता हूँ
जमा हुआ है फ़लक पे कितना ग़ुबार मेरा
तिरे ख़याल को ज़ंजीर करता रहता हूँ
जब तक खुली नहीं थी असरार लग रही थी
बहुत सुकून से रहते थे हम अँधेरे में
किस लम्हे हम तेरा ध्यान नहीं करते
मैं ने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोई
कोई सूरत भी नहीं मिलती किसी सूरत में