हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं
भीड़ बहुत है इस मेले में खो सकता हूँ मैं
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अब कितनी कार-आमद जंगल में लग रही है
जाना तो बहुत दूर है महताब से आगे
दिल रोता है चेहरा हँसता रहता है
क्यूँ आँखें बंद कर के रस्ते में चल रहा हूँ
कभी कभी कितना नुक़सान उठाना पड़ता है
लकीर खींच के बैठी है तिश्नगी मिरी
तब्दीलियों का नश्शा मुझ पर चढ़ा हुआ है
तिरे ख़याल को ज़ंजीर करता रहता हूँ
तमाम रंग अधूरे लगे तिरे आगे
कुछ रस्ते मुश्किल ही अच्छे लगते हैं
किसी को ढूँडते हैं हम किसी के पैकर में