तमाम रंग अधूरे लगे तिरे आगे
सो तुझ को लफ़्ज़ में तस्वीर करता रहता हूँ
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किसी को ढूँडते हैं हम किसी के पैकर में
जमा हुआ है फ़लक पे कितना ग़ुबार मेरा
जब तक खुली नहीं थी असरार लग रही थी
इश्क़ में तहज़ीब के हैं और ही कुछ फ़लसफ़े
मैं जिस जगह भी रहूँगा वहीं पे आएगा
मैं ने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोई
जल बुझा हूँ मैं मगर सारा जहाँ ताक में है
तिरे ख़याल को ज़ंजीर करता रहता हूँ
क्यूँ आँखें बंद कर के रस्ते में चल रहा हूँ
थपक थपक के जिन्हें हम सुलाते रहते हैं
किस लम्हे हम तेरा ध्यान नहीं करते
नए सिरे से कोई सफ़र आग़ाज़ नहीं करता