तहज़ीब की ज़ंजीर से उलझा रहा मैं भी
तू भी न बढ़ा जिस्म के आदाब से आगे
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हमेशा दिल में रहता है कभी गोया नहीं जाता
चारों तरफ़ हैं शोले हम-साए जल रहे हैं
हम को लुत्फ़ आता है अब फ़रेब खाने में
कभी कभी कितना नुक़सान उठाना पड़ता है
हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं
याद करते हो मुझे सूरज निकल जाने के बा'द
जब तक खुली नहीं थी असरार लग रही थी
क्यूँ आँखें बंद कर के रस्ते में चल रहा हूँ
माँगती है अब मोहब्बत अपने होने का सुबूत
कुछ रस्ते मुश्किल ही अच्छे लगते हैं