दिल रोता है चेहरा हँसता रहता है
कैसा कैसा फ़र्ज़ निभाना होता है
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मैं ने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोई
तुम जिस को ढूँडते हो ये महफ़िल नहीं है वो
किसी को ढूँडते हैं हम किसी के पैकर में
हर घर में कोई तह-ख़ाना होता है
कोई सूरत भी नहीं मिलती किसी सूरत में
तिरे ख़याल को ज़ंजीर करता रहता हूँ
ज़रा सी धूप ज़रा सी नमी के आने से
अपनी कहानी दिल में छुपा कर रखते हैं
याद करते हो मुझे सूरज निकल जाने के बा'द
जाना तो बहुत दूर है महताब से आगे
मैं जिधर जाऊँ मिरा ख़्वाब नज़र आता है
अहल-ए-हुनर की आँखों में क्यूँ चुभता रहता हूँ