कोई सूरत भी नहीं मिलती किसी सूरत में
कूज़ा-गर कैसा करिश्मा तिरे इस चाक में है
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बहुत सुकून से रहते थे हम अँधेरे में
ज़रा सी धूप ज़रा सी नमी के आने से
मिरे हिसार से बाहर बुला रहा है मुझे
जल बुझा हूँ मैं मगर सारा जहाँ ताक में है
नए सिरे से कोई सफ़र आग़ाज़ नहीं करता
तिरे ख़याल को ज़ंजीर करता रहता हूँ
तब्दीलियों का नश्शा मुझ पर चढ़ा हुआ है
जाना तो बहुत दूर है महताब से आगे
किस लम्हे हम तेरा ध्यान नहीं करते
याद करते हो मुझे सूरज निकल जाने के बा'द
पीछे छूटे साथी मुझ को याद आ जाते हैं