पीछे छूटे साथी मुझ को याद आ जाते हैं
वर्ना दौड़ में सब से आगे हो सकता हूँ मैं
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कोई सूरत भी नहीं मिलती किसी सूरत में
तिरे ख़याल को ज़ंजीर करता रहता हूँ
आए हो नुमाइश में ज़रा ध्यान भी रखना
इश्क़ में तहज़ीब के हैं और ही कुछ फ़लसफ़े
याद करते हो मुझे सूरज निकल जाने के बा'द
तहज़ीब की ज़ंजीर से उलझा रहा मैं भी
तब्दीलियों का नश्शा मुझ पर चढ़ा हुआ है
बस एक तिरे ख़्वाब से इंकार नहीं है
सियाह रात के बदन पे दाग़ बन के रह गए
ज़रा सी धूप ज़रा सी नमी के आने से
किसी को ढूँडते हैं हम किसी के पैकर में
हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं