रात गए अक्सर दिल के वीरानों में
इक साए का आना जाना होता है
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चारों तरफ़ हैं शोले हम-साए जल रहे हैं
मैं जिस जगह भी रहूँगा वहीं पे आएगा
लकीर खींच के बैठी है तिश्नगी मिरी
हमेशा दिल में रहता है कभी गोया नहीं जाता
इश्क़ में तहज़ीब के हैं और ही कुछ फ़लसफ़े
बस एक तिरे ख़्वाब से इंकार नहीं है
तब्दीलियों का नश्शा मुझ पर चढ़ा हुआ है
हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं
तिरे ख़याल को ज़ंजीर करता रहता हूँ
ज़रा सी धूप ज़रा सी नमी के आने से
तह-ब-तह है राज़ कोई आब की तहवील में