आंख Poetry (page 55)

वो जिस का अक्स लहू को जगा दिया करता

अख्तर शुमार

सारी ख़िल्क़त एक तरफ़ थी और दिवाना एक तरफ़

अख्तर शुमार

पड़े थे हम भी जहाँ रौशनी में बिखरे हुए

अख्तर शुमार

ऐ दुनिया तेरे रस्ते से हट जाएँगे

अख्तर शुमार

अँगूठी

अख़्तर शीरानी

उन को बुलाएँ और वो न आएँ तो क्या करें

अख़्तर शीरानी

न वो ख़िज़ाँ रही बाक़ी न वो बहार रही

अख़्तर शीरानी

किस की आँखों का लिए दिल पे असर जाते हैं

अख़्तर शीरानी

राह-ए-वफ़ा में कोई हमें जानता न था

अख़तर शाहजहाँपुरी

ये बे-सबब नहीं आए हैं आँख में आँसू

अख़्तर सईद ख़ान

बहें न आँख से आँसू तो नग़्मगी बे-सूद

अख़्तर सईद ख़ान

ये हम से पूछते हो रंज-ए-इम्तिहाँ क्या है

अख़्तर सईद ख़ान

सफ़र ही शर्त-ए-सफ़र है तो ख़त्म क्या होगा

अख़्तर सईद ख़ान

अंदेशे मुझे निगल रहे हैं

अख़्तर रज़ा सलीमी

अश्क वो है जो रहे आँख में गौहर बन कर

अख़तर मुस्लिमी

कहाँ जाएँ छोड़ के हम उसे कोई और उस के सिवा भी है

अख़तर मुस्लिमी

होश्यार कर रहा है गजर जागते रहो

अख्तर लख़नवी

मक़्तल की बाज़दीद

अख़्तर हुसैन जाफ़री

तूफ़ाँ से क़र्या क़र्या एक हुए

अख़्तर होशियारपुरी

शिकारी रात भर बैठे रहे ऊँची मचानों पर

अख़्तर होशियारपुरी

लुटाओ जान तो बनती है बात किस ने कहा

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया

अख़्तर अंसारी

किसे जाना कहाँ है मुनहसिर होता है इस पर भी

अखिलेश तिवारी

कभी तो डूब चले हम कभी उभरते हुए

अखिलेश तिवारी

जिस के बग़ैर जी नहीं सकते थे जा चुका

अकबर मासूम

सुन! हिज्र और विसाल का जादू कहाँ गया

अकबर मासूम

उन्हें निगाह है अपने जमाल ही की तरफ़

अकबर इलाहाबादी

मेरी तक़दीर मुआफ़िक़ न थी तदबीर के साथ

अकबर इलाहाबादी

अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके

अकबर इलाहाबादी

दिल तो सादा है तेरी हर बात को सच्चा मानता है

अजमल सिद्दीक़ी

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