दिल तो सादा है तेरी हर बात को सच्चा मानता है
अक़्ल ने बातें करते तेरा आँख चुराना देखा है
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इतना करम इतनी अता फिर हो न हो
सब ने देखा मुझे उठता हुआ मेरे घर से
बोल पड़ता तो मिरी बात मिरी ही रहती
आस पे तेरी बिखरा देता हूँ कमरे की सब चीज़ें
ये ही हैं दिन, बाग़ी अगर बनना है बन
अलग अलग तासीरें इन की, अश्कों के जो धारे हैं
ज़िंदगी रोज़ बनाती है बहाने क्या क्या
बाज़ार में इक चीज़ नहिं काम की मेरे
मेरे साथ सु-ए-जुनून चल मिरे ज़ख़्म खा मिरा रक़्स कर
रो रो के बयाँ करते फिरो रंज-ओ-अलम ख़ूब
ख़त जो तेरे नाम लिखा, तकिए के नीचे रखता हूँ
दुखे दिलों पे जो पड़ जाए वो तबीब नज़र