आस पे तेरी बिखरा देता हूँ कमरे की सब चीज़ें
आस बिखरने पर सब चीज़ें ख़ुद ही उठा के रखता हूँ
Gulzar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Anwar Masood
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(812) Peoples Rate This
बोल पड़ता तो मिरी बात मिरी ही रहती
अलग अलग तासीरें इन की, अश्कों के जो धारे हैं
सब ने देखा मुझे उठता हुआ मेरे घर से
दिल तो सादा है तेरी हर बात को सच्चा मानता है
ये ही हैं दिन, बाग़ी अगर बनना है बन
मेरे साथ सु-ए-जुनून चल मिरे ज़ख़्म खा मिरा रक़्स कर
हर एक सुब्ह वज़ू करती हैं मिरी आँखें
बाज़ार में इक चीज़ नहिं काम की मेरे
दुखे दिलों पे जो पड़ जाए वो तबीब नज़र
इतना करम इतनी अता फिर हो न हो
क्या क्या न पढ़ा इस मकतब में, कितने ही हुनर सीखे हैं यहाँ