आंख Poetry (page 57)

हर लम्हा ज़ुल्मतों की ख़ुदाई का वक़्त है

अहमद मुश्ताक़

इक उम्र की और ज़रूरत है वही शाम-ओ-सहर करने के लिए

अहमद मुश्ताक़

धड़कती रहती है दिल में तलब कोई न कोई

अहमद मुश्ताक़

छिन गई तेरी तमन्ना भी तमन्नाई से

अहमद मुश्ताक़

मैं बंद आँखों से कब तलक ये ग़ुबार देखूँ

अहमद महफ़ूज़

दश्त में वादी-ए-शादाब को छू कर आया

अहमद ख़याल

ज़िंदगी ख़ौफ़ से तश्कील नहीं करनी मुझे

अहमद ख़याल

दश्त में वादी-ए-शादाब को छू कर आया

अहमद ख़याल

आँधी का रजज़

अहमद जावेद

अच्छी गुज़र रही है दिल-ए-ख़ुद-कफ़ील से

अहमद जावेद

गेरवे कपड़े बदन पर हाथ लोहे के कड़े

अहमद जहाँगीर

ज़मज़मा नाला-ए-बुलबुल ठहरे

अहमद हुसैन माइल

प्यार अपने पे जो आता है तो क्या करते हैं

अहमद हुसैन माइल

क्या रोज़-ए-हश्र दूँ तुझे ऐ दाद-गर जवाब

अहमद हुसैन माइल

खड़े हैं मूसा उठाओ पर्दा दिखाओ तुम आब-ओ-ताब-ए-आरिज़

अहमद हुसैन माइल

हो गए मुज़्तर देखते ही वो हिलती ज़ुल्फ़ें फिरती नज़र हम

अहमद हुसैन माइल

चोरी से दो घड़ी जो नज़ारे हुए तो क्या

अहमद हुसैन माइल

मकाशफ़ा

अहमद हमेश

अबद

अहमद हमेश

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

अहमद फ़राज़

अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो

अहमद फ़राज़

काली दीवार

अहमद फ़राज़

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

अहमद फ़राज़

सब लोग लिए संग-ए-मलामत निकल आए

अहमद फ़राज़

न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं

अहमद फ़राज़

जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी

अहमद फ़राज़

जब तिरी याद के जुगनू चमके

अहमद फ़राज़

अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए

अहमद फ़राज़

वक़्त के हर इक नक़्श का मअ'नी इतना बदला बदला होगा

अहमद फ़क़ीह

सदियों के अँधेरे में उतारा करे कोई

अहमद फ़क़ीह

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