अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो
आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आए
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सब क़रीने उसी दिलदार के रख देते हैं
न मिरे ज़ख़्म खिले हैं न तिरा रंग-ए-हिना
मैं तो मक़्तल में भी क़िस्मत का सिकंदर निकला
अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए
तू सामने है तो फिर क्यूँ यक़ीं नहीं आता
न शब ओ रोज़ ही बदले हैं न हाल अच्छा है
हमेशा के लिए मुझ से बिछड़ जा
वापसी
गिला फ़ुज़ूल था अहद-ए-वफ़ा के होते हुए
अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है
किसी दुश्मन का कोई तीर न पहुँचा मुझ तक
आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों पर