आवाज Poetry (page 13)

ख़ामुशी छेड़ रही है कोई नौहा अपना

साक़ी फ़ारुक़ी

ख़ाक नींद आए अगर दीदा-ए-बेदार मिले

साक़ी फ़ारुक़ी

आग हो दिल में तो आँखों में धनक पैदा हो

साक़ी फ़ारुक़ी

अपनी लौ में कोई डूबा ही नहीं

समद अंसारी

वो पल

सलमान अंसारी

लब-ए-तनूर

सलमान अंसारी

दिल को उजड़े हुए बीते हैं ज़माने कितने

सलमान अंसारी

आए हैं घर मिरा सजाने दर्द

सलमान अख़्तर

बुझी बुझी हुई आँखों में गोशवारा-ए-ख़्वाब

सालिम सलीम

खनक जाते हैं जब साग़र तो पहरों कान बजते हैं

सालिक लखनवी

ख़्वाहिश-ए-तख़्त न अब दिरहम-ओ-दीनार की गूँज

सलीम सिद्दीक़ी

सब थकन आँख में सिमट जाए

सलीम शाहिद

मत पूछ कि इस पैकर-ए-ख़ुश-रंग में क्या है

सलीम शाहिद

अब शहर की और दश्त की है एक कहानी

सलीम शाहिद

ये लोग जिस से अब इंकार करना चाहते हैं

सलीम कौसर

तुझ से बढ़ कर कोई प्यारा भी नहीं हो सकता

सलीम कौसर

लय मोहब्बत की है आहंग सुख़न-साज़ का है

सलीम कौसर

बस इक रस्ता है इक आवाज़ और एक साया है

सलीम कौसर

नींद से पहले

सलीम अहमद

लम्हा-ए-रफ़्ता का दिल में ज़ख़्म सा बन जाएगा

सलीम अहमद

ये तो मालूम है उन तक न सदा पहुँचेगी

सलाम संदेलवी

ज़िंदगी

सलाम मछली शहरी

मुझे वो नज़्म लिखनी है

सलाम मछली शहरी

धरती अमर है

सलाम मछली शहरी

मुंकिर-ए-बुत है ये जाहिल तो नहीं

सख़ी लख़नवी

फिर ज़ेहन की गलियों में सदा गूँजी है कोई

सज्जाद बाक़र रिज़वी

रात

सज्जाद बाक़र रिज़वी

तेरे शैदा भी हुए इश्क़-ए-तमाशा भी हुए

सज्जाद बाक़र रिज़वी

शो'ला सा कोई बर्क़-ए-नज़र से नहीं उठता

सज्जाद बाक़र रिज़वी

ख़्वाहिश में सुकूँ की वही शोरिश-तलबी है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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