आवाज Poetry (page 12)

शेरी का नौहा

सरवत ज़ेहरा

अजाइब-ख़ाना

सरवत ज़ेहरा

विसाल

सरवत हुसैन

नज़्म

सरवत हुसैन

''एक नज़्म कहीं से भी शुरूअ हो सकती है''

सरवत हुसैन

दिन और झाग

सरवत हुसैन

दश्त ले जाए कि घर ले जाए

सरवत हुसैन

सर झुका लेता था पहले जिस को अक्सर देख कर

सरमद सहबाई

बे-सदा सी किसी आवाज़ के पीछे पीछे

सरफ़राज़ नवाज़

लड़खड़ाता हूँ कभी ख़ुद ही सँभल जाता हूँ

सरफ़राज़ नवाज़

अब जिस्म के अंदर से आवाज़ नहीं आती

सरफ़राज़ ख़ालिद

ख़मोशी में छुपे लफ़्ज़ों के हुलिए याद आएँगे

सरदार सलीम

आज दीवाने का ज़ौक़-ए-दीद पूरा हो गया

सरदार सलीम

खोला दरवाज़ा समझ कर मुझ को ग़ैर

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

लाख समझाया मगर ज़िद पे अड़ी है अब भी

सदार आसिफ़

शायद मिट्टी मुझे फिर पुकारे

सारा शगुफ़्ता

परिंदा कमरे में रह गया

सारा शगुफ़्ता

कैसे टहलता है चाँद

सारा शगुफ़्ता

मैं मसरूर हूँ उस से महजूर हो कर

साक़िब कानपुरी

ख़ामुशी छेड़ रही है कोई नौहा अपना

साक़ी फ़ारुक़ी

शेर-इमदाद-अली का मेडक

साक़ी फ़ारुक़ी

मुहासबा

साक़ी फ़ारुक़ी

मुहासरा

साक़ी फ़ारुक़ी

एक सुअर से

साक़ी फ़ारुक़ी

अलकुबड़े

साक़ी फ़ारुक़ी

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साक़ी फ़ारुक़ी

वो आग हूँ कि नहीं चैन एक आन मुझे

साक़ी फ़ारुक़ी

वक़्त अभी पैदा न हुआ था तुम भी राज़ में थे

साक़ी फ़ारुक़ी

उम्र इंकार की दीवार से सर फोड़ती है

साक़ी फ़ारुक़ी

लोग थे जिन की आँखों में अंदेशा कोई न था

साक़ी फ़ारुक़ी

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