बे-सदा सी किसी आवाज़ के पीछे पीछे
चलते चलते मैं बहुत दूर निकल जाता हूँ
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तुम्हारे सच की हिफ़ाज़त में यूँ हुआ अक्सर
सफ़र कहाँ से कहाँ तक पहुँच गया मेरा
मौसमों वाले नए दाना ओ पानी वाले
बदन-सराए में ठहरा हुआ मुसाफ़िर हूँ
मुझ को होना है तो दरवेश के जैसा हो जाऊँ
वो कोई आम सा ही जुमला था
दिए निगाहों के अपनी बुझाए बैठा हूँ
नज़र भी आया तो ख़ुद से छुपा लिया मैं ने
आईना चुपके से मंज़र वो चुरा लेता है
ख़ुदा करे कि वही बात उस के दिल में हो
बला से नाम वो मेरा उछाल देता है