सफ़र कहाँ से कहाँ तक पहुँच गया मेरा
रुके जो पाँव तो काँधों पे जा रहा हूँ मैं
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मुझ को होना है तो दरवेश के जैसा हो जाऊँ
बला से नाम वो मेरा उछाल देता है
बे-सदा सी किसी आवाज़ के पीछे पीछे
मिरे बग़ैर कोई तुम को ढूँडता कैसे
हम अपने शहर से हो कर उदास आए थे
बदन-सराए में ठहरा हुआ मुसाफ़िर हूँ
नज़र भी आया तो ख़ुद से छुपा लिया मैं ने
इश्क़ अदब है तो अपने आप आए
आईना चुपके से मंज़र वो चुरा लेता है
यूँ उड़ाती है जो हवा मुझ को
किसे ख़बर थी कि इस को भी टूट जाना था
ये मैं ने माना कि पहरा है सख़्त रातों का