इश्क़ अदब है तो अपने आप आए
गर सबक़ है तो फिर पढ़ा मुझ को
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बदन-सराए में ठहरा हुआ मुसाफ़िर हूँ
दिए निगाहों के अपनी बुझाए बैठा हूँ
तुम्हारे सच की हिफ़ाज़त में यूँ हुआ अक्सर
लड़खड़ाता हूँ कभी ख़ुद ही सँभल जाता हूँ
सफ़र कहाँ से कहाँ तक पहुँच गया मेरा
आईना चुपके से मंज़र वो चुरा लेता है
नज़र भी आया तो ख़ुद से छुपा लिया मैं ने
बे-सदा सी किसी आवाज़ के पीछे पीछे
ख़ुदा करे कि वही बात उस के दिल में हो
एक रस्ते की कहानी जो सुनी पानी से
मुझ को होना है तो दरवेश के जैसा हो जाऊँ
बला से नाम वो मेरा उछाल देता है