मिरे बग़ैर कोई तुम को ढूँडता कैसे
तुम्हें पता है तुम्हारा पता रहा हूँ मैं
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एक रस्ते की कहानी जो सुनी पानी से
ये मैं ने माना कि पहरा है सख़्त रातों का
हम अपने शहर से हो कर उदास आए थे
बदन-सराए में ठहरा हुआ मुसाफ़िर हूँ
बे-सदा सी किसी आवाज़ के पीछे पीछे
दिए निगाहों के अपनी बुझाए बैठा हूँ
बला से नाम वो मेरा उछाल देता है
तुम्हारे सच की हिफ़ाज़त में यूँ हुआ अक्सर
तिरे ख़ुलूस के क़िस्से सुना रहा हूँ मैं
आईना चुपके से मंज़र वो चुरा लेता है
इश्क़ अदब है तो अपने आप आए