ख़ुश्बू की आवाज़ सुनी
ग़ुंचा-ए-लब के खिलते ही
पानी पर कुछ नक़्श बने
परतव-ए-शाख़ के हिलते ही
सारी बातें भूल गए
उस से आँखें मिलते ही
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Rahat Indori
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
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पत्थरों में आइना मौजूद है
जिसे अंजाम तुम समझती हो
सोचता हूँ दयार-ए-बे-परवा
इतने बहुत से रंग
शहज़ादी तुझे कौन बताए तेरे चराग़-कदे तक
ले आएगा इक रोज़ गुल ओ बर्ग भी 'सरवत'
सोचता हूँ कि उस से बच निकलूँ
सफ़ीना रखता हूँ दरकार इक समुंदर है
बहुत मुसिर थे ख़ुदायान-ए-साबित-ओ-सय्यार
दश्त ले जाए कि घर ले जाए
आश्नाई का फ़रिश्ता
क़िन्दील-ए-मह-ओ-मेहर का अफ़्लाक पे होना