ख़ुश्बू की आवाज़ सुनी
ग़ुंचा-ए-लब के खिलते ही
पानी पर कुछ नक़्श बने
परतव-ए-शाख़ के हिलते ही
सारी बातें भूल गए
उस से आँखें मिलते ही
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
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Gulzar
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मुंहदिम होती हुई आबादियों में फ़ुर्सत-ए-यक-ख़्वाब होते
मिरे सीने में दिल है या कोई शहज़ादा-ए-ख़ुद-सर
विसाल
पूरे चाँद की सज धज है शहज़ादों वाली
यक-ब-यक मंज़र-ए-हस्ती का नया हो जाना
जाने उस ने क्या देखा शहर के मनारे में
किताब-ए-सब्ज़ ओ दर-ए-दास्तान बंद किए
आँखों में दमक उट्ठी है तस्वीर-ए-दर-ओ-बाम
सूरमा जिस के किनारों से पलट आते हैं
बुझी रूह की प्यास लेकिन सख़ी
ख़ुश-लिबासी है बड़ी चीज़ मगर क्या कीजे
दश्त ले जाए कि घर ले जाए