सोचता हूँ दयार-ए-बे-परवा
क्यूँ मिरा एहतिराम करने लगा
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सुब्ह के शोर में नामों की फ़रावानी में
रात ढलने के ब'अद क्या होगा
'सरवत' तुम अपने लोगों से यूँ मिलते हो
पेपर-वेट
ये इंतिहा-ए-मसर्रत का शहर है 'सरवत'
मुंहदिम होती हुई आबादियों में फ़ुर्सत-ए-यक-ख़्वाब होते
पाँव साकित हो गए 'सरवत' किसी को देख कर
तेरी आशुफ़्ता-मिज़ाजी ऐ दिल
नज़्म
सफ़ीना रखता हूँ दरकार इक समुंदर है
पत्थरों में आइना मौजूद है
सितारे का गुमान