साया है गहरी चुप का अकेले मकान पर
दिल मुतमइन बहुत है मगर इस गुमान पर
रौशन है इक सितारा हमारे भी नाम का
पेड़ों की चोटियों से उधर आसमान पर
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दस से ऊपर
किताब-ए-सब्ज़ ओ दर-ए-दास्तान बंद किए
आँखों में दमक उट्ठी है तस्वीर-ए-दर-ओ-बाम
मौत के दरिंदे में इक कशिश तो है 'सरवत'
एक पुल बनाया जा रहा है
कभी तेग़-ए-तेज़ सुपुर्द की कभी तोहफ़ा-ए-गुल-ए-तर दिया
नई नई सी आग है या फिर कौन है वो
चाहत
लहर-लहर आवारगियों के साथ रहा
जंगल में कभी जो घर बनाऊँ
सोचता हूँ कि उस से बच निकलूँ
जाने उस ने क्या देखा शहर के मनारे में