आदमी पेड़ और मकान
साफ़ नीला आसमान
संग-रेज़े और गुलाब
सब के सब अच्छे लगे
उस के घर जाते हुए
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Rahat Indori
Wasi Shah
Habib Jalib
Gulzar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
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सोचता हूँ कि उस से बच निकलूँ
रात ढलने के ब'अद क्या होगा
शादमानी का फ़रिश्ता
हवा ओ अब्र को आसूदा-ए-मफ़्हूम कर देखूँ
मैं तुम्हें याद कर रहा था
सोचता हूँ दयार-ए-बे-परवा
तेरी आशुफ़्ता-मिज़ाजी ऐ दिल
ये होंट तिरे रेशम ऐसे
कभी तेग़-ए-तेज़ सुपुर्द की कभी तोहफ़ा-ए-गुल-ए-तर दिया
ये जो फूट बहा है दरिया फिर नहीं होगा
दरख़्त मेरे दोस्त
घर से निकला तो मुलाक़ात हुई पानी से