बहता हुआ पानी
पेड़ों के माथे को
चूम गए बादल
शाख़ों से टकराएँ
हात
कच्चे फलों की
ख़ुशबू जगाए
सूरज की बाँहों में
....रात
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पहनाए-बर-ओ-बहर के महशर से निकल कर
चाहत
दस से ऊपर
ख़ुश-लिबासी है बड़ी चीज़ मगर क्या कीजे
लहर-लहर आवारगियों के साथ रहा
ये इंतिहा-ए-मसर्रत का शहर है 'सरवत'
मौत के दरिंदे में इक कशिश तो है 'सरवत'
क़िन्दील-ए-मह-ओ-मेहर का अफ़्लाक पे होना
इतने बहुत से रंग
नींद का फ़रिश्ता
अपने लिए तज्वीज़ की शमशीर-ए-बरहना
दश्त छोड़ा तो क्या मिला 'सरवत'