अपने लिए तज्वीज़ की शमशीर-ए-बरहना
और उस के लिए शाख़ से इक फूल उतारा
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दो ही चीज़ें इस धरती में देखने वाली हैं
सुब्ह के शहर में इक शोर है शादाबी का
किताब-ए-सब्ज़ ओ दर-ए-दास्तान बंद किए
फिर वो बरसात ध्यान में आई
निस्यान का फ़रिश्ता
तेरी आशुफ़्ता-मिज़ाजी ऐ दिल
गर्दिश-ए-सय्यारगाँ ख़ूब है अपनी जगह
अपने अपने घर जा कर सुख की नींद सो जाएँ
हुस्न-ए-बहार मुझ को मुकम्मल नहीं लगा
चाहत
एक पुल बनाया जा रहा है
पेपर-वेट