दो ही चीज़ें इस धरती में देखने वाली हैं
मिट्टी की सुंदरता देखो और मुझे देखो
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बहता हुआ पानी
ये इंतिहा-ए-मसर्रत का शहर है 'सरवत'
गदा-ए-शहर-ए-आइंदा तही-कासा मिलेगा
मैं आग देखता था आग से जुदा कर के
वो मेरे सामने मल्बूस क्या बदलने लगा
दस से ऊपर
इक रोज़ मैं भी बाग़-ए-अदन को निकल गया
तेरी आशुफ़्ता-मिज़ाजी ऐ दिल
मिरे सीने में दिल है या कोई शहज़ादा-ए-ख़ुद-सर
ख़ुश-लिबासी है बड़ी चीज़ मगर क्या कीजे
पूरे चाँद की सज धज है शहज़ादों वाली