निस्यान के फ़रिश्ते
वो याद महव कर दे
दिल की तह में जो मेरे
काँटा बनी हुई है
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वो मेरे सामने मल्बूस क्या बदलने लगा
सफ़ीना रखता हूँ दरकार इक समुंदर है
पानी का हाथ
पूरे चाँद की सज धज है शहज़ादों वाली
इक दास्तान अब भी सुनाते हैं फ़र्श ओ बाम
दस से ऊपर
यक-ब-यक मंज़र-ए-हस्ती का नया हो जाना
दरख़्त मेरे दोस्त
उम्र का कोह-ए-गिराँ और शब-ओ-रोज़ मिरे
जब शाम हुई मैं ने क़दम घर से निकाला
रात बाग़ीचे पे थी और रौशनी पत्थर में थी
मैं आग देखता था आग से जुदा कर के