ये होंट तिरे रेशम ऐसे
खुलते हैं शगूफ़े कम ऐसे
ये बाग़ चराग़ सी तन्हाई
ये साथ गुल ओ शबनम ऐसे
मिरी धूप में आने से पहले
कभी देखे थे मौसम ऐसे
किस फ़स्ल में कब यकजा होंगे
सामान हुए हैं बहम ऐसे
सीने में आग जहन्नम सी
और झोंके बाग़-ए-इरम ऐसे
Wasi Shah
Jaun Eliya
Rahat Indori
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Gulzar
Allama Iqbal
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दो ही चीज़ें इस धरती में देखने वाली हैं
गर्दिश-ए-सय्यारगाँ ख़ूब है अपनी जगह
बुझी रूह की प्यास लेकिन सख़ी
आश्नाई का फ़रिश्ता
अपने अपने घर जा कर सुख की नींद सो जाएँ
देखा जो उस तरफ़ तो बदन पर नज़र गई
बहता हुआ पानी
नींद का फ़रिश्ता
यक-ब-यक मंज़र-ए-हस्ती का नया हो जाना
किस पर पोशीदा और किस पे अयाँ होना था
नज़्म
सितारे का गुमान