खनक जाते हैं जब साग़र तो पहरों कान बजते हैं
अरे तौबा बड़ी तौबा-शिकन आवाज़ होती है
Gulzar
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कही किसी से न रूदाद-ए-ज़िंदगी मैं ने
ज़िंदाँ में आचानक है ये क्या शोर-ए-सलासिल
दिल ने सीने में कुछ क़रार लिया
मिट चुके जो भी थे तौबा-शिकनी के अस्बाब
खींच भी लीजिए अच्छा तो है तस्वीर-ए-जुनूँ
यूँही इंसानों के शहरों में मिला अपना वजूद
डरता रहता हूँ हम-नशीनों में
अपनी ख़ुद्दारी सलामत दिल का आलम कुछ सही
अब ऐसी बातें कोई करे जो सब के मन को लुभा जाएँ
वुसअ'त-ए-दामान-ए-दिल को ग़म तुम्हारा मिल गया
महव यूँ हो गए अल्फ़ाज़-ए-दुआ वक़्त-ए-दुआ
धुआँ देता है दामान-ए-मोहब्बत