खींच भी लीजिए अच्छा तो है तस्वीर-ए-जुनूँ
आप की बज़्म में क्या जानिए कल हों कि न हों
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बहार-ए-गुलिस्ताँ हम को न पहचाने तअज्जुब है
यूँही इंसानों के शहरों में मिला अपना वजूद
दिल ने सीने में कुछ क़रार लिया
खनक जाते हैं जब साग़र तो पहरों कान बजते हैं
मिट चुके जो भी थे तौबा-शिकनी के अस्बाब
मंज़िल न मिली कश्मकश-ए-अहल-ए-नज़र में
कही किसी से न रूदाद-ए-ज़िंदगी मैं ने
साहिल पे क़ैद लाखों सफ़ीनों के वास्ते
ये भी इक रात कट ही जाएगी
चाहा था ठोकरों में गुज़र जाए ज़िंदगी
निगाह-ए-शौक़ से लाखों बना डाले हैं दर हम ने
धुआँ देता है दामान-ए-मोहब्बत