चाहा था ठोकरों में गुज़र जाए ज़िंदगी
लोगों ने संग-ए-राह समझ कर हटा दिया
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Wasi Shah
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Javed Akhtar
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मंज़िल न मिली कश्मकश-ए-अहल-ए-नज़र में
जो तेरी बज़्म से उट्ठा वो इस तरह उट्ठा
बढ़ते हैं ख़ुद-ब-ख़ुद क़दम अज़्म-ए-सफ़र को क्या करूँ
ज़िंदाँ में आचानक है ये क्या शोर-ए-सलासिल
अपनी ख़ुद्दारी सलामत दिल का आलम कुछ सही
मय-ख़ाना-ए-हस्ती में साक़ी हम दोनों ही मुजरिम हैं शायद
सितारे की तरह सीने में दिल डूबा किया लेकिन
माल-ओ-ज़र अहल-ए-दुवल सामने यूँ गिनते हैं
महव यूँ हो गए अल्फ़ाज़-ए-दुआ वक़्त-ए-दुआ
अब ऐसी बातें कोई करे जो सब के मन को लुभा जाएँ
ये भी इक रात कट ही जाएगी
धुआँ देता है दामान-ए-मोहब्बत